नीम का पेड़ और छुट्टियाँ !

सरकारी स्कूल छोड़ने के बाद मैंने एक प्राइवेट स्कूल में दाखिला ले लिया था। पड़ोस की एक अध्यापिका उस स्कूल में पढ़ाती थी। उनका अक्सर हमारे घर पर आना जाना होता था। उनके परामर्श से ही मेरा दाखिला उनके स्कूल में हो गया था। एक नयी जगह, नया स्कूल, नए अध्यापक नए सहपाठी और पड़ोस में लगा हुआ नीम का नया पेड़। पता नहीं मैं क्यों उस पेड़ के बगल वाले रास्ते से ही स्कूल जाता और आता था। मगर एक रास्ता स्कूल की सामने वाली गली से भी होकर गुजरता था। लेकिन मैं कभी कभी उस रास्ते से आता था। शुरुआत मैं मैंने उस पेड़ और स्कूल पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया क्यूंकि पुराने स्कूल की यादें अब भी ताज़ा थी। धीरे धीरे वो यादें अब धुंधली होने लगी थी। एक नए स्कूल की शुरुआत के साथ एक नए डर ने भी जन्म ले लिए था। चूँकि मैं अंग्रेजी और गणित में कुछ ज्यादा ही कमज़ोर था और स्कूल के दूसरे बच्चों के साथ साथ अपना तालमेल नहीं बिठा पा रहा था। वैसे कक्षा में पहले से ही मेरे से ज्यादा कमज़ोर बच्चे मौजूद थे। मैं सप्ताह में मुश्किल से तीन दिन ही स्कूल जाता था। धीरे धीरे यह आदत बढ़ने लगी थी। इससे पहले वाले स्कूल में छुट्टी तो करता था मगर इतनी नहीं। छुट्टी के अलावा अब तो बंक की भी आदत हो गयी थी। 

कभी उसके पत्ते झड़ गए तो कभी पूरी हरियाली।  
कभी नीम की निम्बोली तो कभी सूखी डाली।।
स्कूल बंक और छुट्टी करके ज्यादातर समय अपने दोस्त के यहां ही रुकता था एक तो उसका घर स्कूल से घर आने के रास्ते में पड़ता था और दूसरा टाइम पास के लिए उसके पास बढ़िया साधन थे। हम दोनों की छुट्टी की आदत एक जैसी ही थी।  पढ़ाई के दबाव से बंक की आदत अब तो और भी मजबूत हो गयी थी। नयी कक्षा में दाखिले के समय भी मैंने अक्सर अपना दाखिला देरी से ही लिया था। जिस दिन मुझे बंक करना होता था तो मेरा आखिरी पड़ाव वो नीम का पेड़ ही होता था। नीम के पेड़ से आगे कदम बढ़ाने पर समझो मैं स्कूल ही जाता था क्यूंकि फिर सामने स्कूल साफ साफ दिखाई पड़ता था। मेरी कक्षाओं के दौरान मैंने जैसे पड़ाव देखे थे शायद उस नीम के पेड़ ने भी देखें होंगे।

इन्सान के जज़्बात तो किसी से भी मिल जाते हैं वो तो एक जीता जागता पेड़ था। छठीं कक्षा से आठवीं तक न जाने कितनी छुट्टियां और बंक करें होंगे पता नहीं। इसी कारण से सहपाठियो का अक्सर घर पर आना जाना लगा रहता था। एक बार एक अध्यापिका भी मेरे घर आ गयी थी। मेरी छुट्टियों से अब सबको ही दिक्कतें आने लगी थी। आठवीं कक्षा की दिसम्बर का महिना था और अपनी आदत से मजबूर मैंने फिर से छुट्टी कर ली थी। मगर इस बार छुट्टी करके मैं घर पर ही था। शायद तबियत खराब होने के कारण मैं दो–तीन स्कूल नहीं गया फिर एक दिन जब स्कूल गया और जैसे ही कक्षा में जाकर बैठा वैसे ही कक्षा की अध्यापिका आई और सबसे पहले बोली कि, “मैं आया हूँ., आया हैं, बच्चों ने जवाब दिया। फिर अध्यापिका मेरे पास आई और बोली कि आज के बाद मैं स्कूल नहीं आऊँगी और आज मेरा स्कूल में आखिरी दिन है, तुम्हे आगे से रोज़ स्कूल आना है। हाँ, मैंने उत्तर दिया। उस दिन से मैंने अपनी स्कूल की छुट्टियों पर नियंत्रण किया फिर भी केवल और केवल छुट्टी ही होतीं थी बंक नहीं। आठवीं की परीक्षा देने के बाद स्कूल छूटा। अब एक नए स्कूल की बारी थी जो अब तक नया था वो कल से पुराना होने वाला था। फिर से एक नया माहौल और नए दोस्त! नीम का वो पेड़ जो अब भी मेरे जहन में था लेकिन एक स्टॉप पॉइंट (Stop Point) तक। वो दिन आ ही गया जब यह स्कूल भी छूट गया ये यादें भी अब धुंधली होने वाली थी। उसके बाद से फिर हमेशा के लिए स्कूल छूट गया, शायद ये मेरे ज्यादा ही छुट्टी करने का नतीजा था।
जब कभी भी स्कूल की याद आने लगती थी तो पैर उस तरफ चल पड़ते थे। वहाँ जाकर जब उस नीम के पेड़ को देखता तो यादें फिर से ताज़ा होने लगती थी। बगल वाला रास्ता ऐसे लगता कि मानो वह कह रहा हो इस नीम के पेड़ को देखो और यहीं से वापस लौट जाओ। रास्ते से गुजरते हुए पुराने दृश्य (Scene) मेरी आँखों के सामने एक के बाद एक आते गए। ऐसा लगता कि यह कल परसों की बात हो लेकिन अगले ही क्षण प्रतीत होता कि इस जगह को छोड़े हुए अर्सा बीत गया हो। कब एक बच्चा नौजवान में तब्दील हो गया पता ही नहीं चला। कभी कभी वहाँ से गुजरते हुए सोंचने लगता कि काश वो दिन फिर से वापस आ जाये और मैं फिर से स्कूल जाता और इसी नीम के पेड़ के पास आकर वापस लौट जाता और फिर से मेरा एक बंक हो जाता, शायद मैं घर से ही नहीं आता मगर छुट्टी जरूर करता। एक शाम हल्के हल्के काले बादल छाये हुए थे, हवा भी बहुत तेज़ चल रही थी। मन हुआ कि बाहर घूम लूँ। अब हल्की हल्की बारिश भी होने लगी थी। पता ही नहीं चला कि चलते चलते कब मैं उस नीम के पेड़ तक पहुंच गया। बारिश तेज़ हो रही थी मैं पेड़ के नीचे खड़े होकर देर तक उस पेड़ और उस जगह को निहारता रहा। अब बारिश बंद हो चुकीं थी लोगों का आस पास चलना चालू हो गया था। मैंने झटपट अपने आपको संभाला उस थोड़ी देर के दृशय (Scene) को संजोकर वहाँ से घर कि ओर चल पड़ा। रास्ते भर यादों की उधेड़बुन जारी रही !
नीम का पेड़ और छुट्टियाँ ! नीम का पेड़ और छुट्टियाँ ! Reviewed by Education Motivation TIPS on September 10, 2020 Rating: 5

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