विश्वकर्मा जयंती एक खास उत्सव।

हिंदू धर्म में कई त्यौहार मनाए जाते हैं उनमें से एक 
विश्वकर्मा जयंती का भी विशेष महत्व हैं। आइए विश्वकर्मा जयंती के महत्व को शुरू से जानें।
 
भगवान विश्वकर्मा जी
                       
पौराणिक कथाओं के अनुसार ब्रह्मा जी के पुत्र “धर्म” का विवाह “वस्तु” से हुआ।धर्म के सात पुत्र हुए इनके सातवें पुत्र का नाम “वास्तु”रखा गया, जो शिल्पशास्त्र की कला में परिपूर्ण थे। वास्तु से जन्मे पुत्र का नाम विश्वकर्मा” रखा गया। जो शिल्प कलाधिपति, सृष्टिकर्ता, तकनीकी और विज्ञान के जनक भगवान विश्वकर्मा की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति की उन्नति होती है।

हिंदू धर्म मान्यताओं के अनुसार भगवान विश्वकर्मा को शिल्पकार भी माना गया हैं क्योंकि कृष्ण की द्वारिका नगरी, शिव जी का त्रिशूल, पांडवों की इंद्रप्रस्थ नगरी, पुष्पक विमान, इंद्र का व्रज, सोने की लंका को भी विश्वकर्मा भगवान ने बनाया था। इसके अलावा प्राचीन काल में देवताओं के महल और अस्त्र-शस्त्र विश्वकर्मा भगवान ने ही बनाए थे। भगवान विश्वकर्मा को मूर्तिकला, सृजन, निर्माण, वास्तुकला, औजार, शिल्पकला, एवं वाहनों समेत समस्त संसारिक वस्तुओं के अधिष्ठात्र देवता माना जाता हैं।


हर वर्ष 17 सितंबर को ही क्यों मनाई जाती है विश्वकर्मा जयंती:-
हर साल 17 सितंबर को विश्वकर्मा जयंती मनाने के पीछे एक विशेष कारण हैं मान्यतानुसार अश्विन कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि को भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था।
कुछ लोगों के अनुसार भाद्रपद की अंतिम तिथि को विश्वकर्मा पूजा करना बेहद शुभ होता है। इस दिन कन्या संक्रांति भी होती हैं। बंगाल, बिहार, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, असम, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, उड़ीसा, त्रिपुरा, झारखंड व अन्य राज्यों के अलावा नेपाल देश में भी विश्वकर्मा जयंती मनाई जाती हैं।

विश्वकर्मा जयंती क्यों मनाई जाती हैं:-
एक बार एक रथकार अपनी पत्नी के साथ पावन नगरी काशी में रहता था, लेकिन अधिक धन ना कमाने और संतान सुख से वंचित रहने के कारण दोनो चिंतित रहते थे। संतान सुख की प्राप्ति के लिए दोनों का साधु संतों के पास आना जाना लगा रहता था लेकिन उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हुई। तब एक ब्राह्मण पड़ोसी ने रथकार की पत्नी को सलाह दी कि, तुम भगवान विश्वकर्मा की शरण में जाओ, तुम्हारी अवश्य ही इच्छा पूरी होगी। रथकार और उसकी पत्नी ने भगवान विश्वकर्मा की पूजा विधिपूर्वक की। पुत्र की प्राप्ति के साथ साथ उन्हें धन की प्राप्ति भी हुई और वह दोनों सुखी पूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे। तभी से विश्वकर्मा जी की पूजा बड़े धूमधाम के साथ की जाने लगी।
इस दिन कारखानों में विश्वकर्मा जी की पूजा करके फिर मशीनों, यंत्रों और औजारों की भी पूजा की जाती हैं। प्रसाद बांटा जाता हैं। लोग विश्वकर्मा जयंती वाले दिन पूजा करने के बाद अपने वाहनों, यंत्रों, औजारों की पूजा करते हैं, फिर प्रसाद बांटते हैं।
जरूरतमंदों को दान देने से पुण्य मिलता हैं।
विश्वकर्मा जी की पूजा से व्यक्ति को सुख, निपुणता, कला और उन्नति का आशीर्वाद मिलता हैं।
।।बोलो विश्वकर्मा भगवान की जय।।










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